जो कहता फिरता बात ये, नहीं उसे आराम है |
अब व्यस्त बहुत है जिंदगी, कर्म करे निज धाम है ||
जो व्यस्त समय को साधता, करता कर्म महान है |
वह जीवन के संग्राम में ,पाता सबसे मान है ||
व्यस्त मनुज है काम में, करता लोभ अपार है |
भजन करो तुम ईश का,नश्वर यह संसार है ||
भूला है सत्कर्म को, इतना मानव व्यस्त है |
करे संपत्ति लालसा, बहुत काम से पस्त है ||
मनुज विचारे मन सदा, वैभव मिले अपार है |
दिया जन्म जिसने उसे, भूला उसको प्यार है ||
चरण स्वर्ग है मातु के, मानव भूला आज है |
कहता फिरता व्यस्त है,करता अपने काज है ||
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कवयित्री
कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "
लखनऊ
उत्तरप्रदेश