तंग हाल फटे कपड़े टूटा मकान देखा,
गरीब से मिला हूँ जब दिल से साफ़ देखा,
हर हाल मैं यहाँ जी लेता है वो ज़मीं पर ,
जीने का उसके अजीब हिसाब देखा,
रोशनी की फ़िक्र ना उस को अंधेरों का डर,
आंखों में उसकी काम का ही ख़्वाब देखा,
कर लेता है पार जोखिमों को भी हंसकर,
ना चेहरे पर उसकी शिकन का निशां देखा,
बच्चें भी शाम को आने की राह तकते उसकी,
परिवार से उसका सब में बड़ा लगाव देखा,
मिल जाता उसे कोई ढ़ंग का बाबू जी,
उसमें ही बसता उसका संसार देखा,
जब भी मिला कभी किसी गरीब से मैं,
दिल का साफ काम का वफ़ादार देखा,
रचनाकार
रामेश्वर दास भांन
करनाल हरियाणा