जब मन जुदाई से डरा हो।
अथाह गम समन्दर भरा हो।।
जब कस्ती को किनारा न मिले।
तन्हां होती बेसहारा जिंदगी
को कोई सहारा न मिले।।
बिछड़ते साथी प्रीत का,
मिले सहारा संगीत का।।
जब उम्मीदों के सागर सूख जाए।
आंधी-तूफान, या तेज धूप आए।।
बढ़ते कदम रुक जाए राह में।
बहती तमन्नाएं तेज धार में।।
तो आनन्ददायी गीत का।
मिले सहारा संगीत का।।
शीतल छांव में जब हाथों में हाथ था।
बीते हर आलम में एक दूजे का साथ था।।
इश्क़, इबादत, सौंदर्य बिछड़े मीत का।
वो चांदनी रात मधुर मिलन की गीत का।।
बिछड़े साथी मीत का।
मिले सहारा संगीत का।।
देवप्रसाद पात्रे
मुंगेली, छत्तीसगढ़