हुआ अजूबा एक,बोलती ऑंखें देखी |
माँग़ रही कुछ और,मौन हैं इच्छा शेखी ||
चाहे जैसा कर्म, पुजारी दुनिया धन की |
आँसू पूजे धर्म, भिखारी कहते मन की ||
मिली प्रतिष्ठा आज जो, उसका कोई मोल है |
झूठे सारे चेहरे, कहे सब अपने बोल है ||
हाय तपस्या आज, मौन क्यूँ तुम चिल्लाती |
जरा वेदना बोल, अश्रु बन क्यूँ बह जाती ||
ठहर गयी खुद आस,आँख अब भरती जाती |
मचली इकपल प्यास,नहीं धीरज रख पाती |
सावन बरसे मेघ जब, नैनन बहती धार है |
एक भरोसा ईश है, वही लगावे पार है ||
कल्पना भदौरिया