जब भी
वो सारा का सारा अनकहा
नोट कर लेती हूं
मन की डायरी के पिछले पन्नें पर ,
कुछ-कुछ लिखने की कोशिश करती हूं
कविता की सी भाषा में ,
और,,
अक्सर लिख जाती हूं,,सूरज के सूरजमुखी !!
हो सकता है,,ये कविताएं
शुरुआत में रूखी-सूखी,,अधपकी सी लगे
और शायद थोड़ी बेस्वाद भी ,
क्योंकि मेरे किसी भी रफ ड्राफ्ट में
न तो मिर्च-मसाला है
और न ही कैडबरी वाली शुगर कोटेड मिठास ,
मेरे लिए
ऐसे ही अच्छे-भले हैं..भोले से,,बुद्धू से,,
पारले जी की एवरग्रीन स्माइल के साथ,,
ये सूरज के सूरजमुखी !!
क्या कभी सोचा है तुमने
क्यों करता है ये अथक इंतज़ार दिनभर
सूरज का,, आखिर क्यों,,
कहां से लाता है इतना पीलापन
कि उदास नहीं दिखता भरी दोपहरियों में भी ,
सदैव खिला रहता है बड़ी सी मुस्कुराहट के साथ ,
क्यों ये तपता हुआ सूरज ही है
उसकी अतृप्त प्यास का कारण और निवारण भी ,
कहीं देखें हैं तुमने ऐसे सोलमेट,, नहीं न ,
वो जो नहीं समझते प्रेम में प्रतिक्षाएं और समर्पण
एक बार बनकर तो देखें,,सूरज के सूरजमुखी !!
( स्वरचित व अप्रकाशित )
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ , उत्तर प्रदेश