युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
जीवन का आलम्बन माँ से,
रोम - रोम स्पन्दन माँ से।
आहार-विहार,आन्दन माँ से,
प्रगाढ़ स्नेहिलआलिंगन माँ से।
सदा हृदय से लगा के रखती,
शुभ आशीष है चुम्बन माँ से।
माँ ही उचारूं,माँ ही पुकारूँ,
प्रथम मिला उच्चारण माँ से।
गीली- गीली जगह चुनी खुद,
सदा मिला सुखासन माँ से।
माँ की ममता, माँ की समता,
मिला सभी उच्चासन माँ से।
सबसे प्यारा,मेरा राजदुलारा,
मिला सर्वप्रिय नामांकन माँ से।
जब तक हाथ फिरे ममता का,
धन्य-धन्य हुआ जीवन माँ से।
कर्ता - धर्ता सभी है तो वह,
किसका करूँ तुलनांकन माँ से।
जिसके बल पर निश्चिन्त रहा हूँ
फिर कैसे करूँ विसर्जन माँ से।
अनुपम चतुर्वेदी ,सन्त कबीर नगर, उ०प्र०