अब कागज पर उकेरूंगा !

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क  

मन ही मन रच डाली नई दुनिया जो,

अब कागज पर उकेरूंगा !

एक लंबे अर्से बाद जो कलम

सो गई थी, उसे जगाकर फिर

उठा रहा हूं, एक तरफ बोझिल

कागज पर, जिज्ञासाओं के अक्षर,

चमका रहा हूं, मैं खुद में ढूंढ रहा,

खुद की लेखनप्रभा शायद सो गई

संसार के बोझिलपन में गुम गई !

हौंसले अब भी मंद नहीं, परवान

चढ़ रहे हैं नया गुलिस्तां बनाने को,

मन ही मन रच डाली नईदुनिया जो,

अब कागज पर उकेरूंगा, मेरी लेखनी

से लोगों का दर्द समेटने जा रहा मैं,

नहीं देख सकता, निष्ठुरों का अत्याचार,

बुढ़ी आंखों की डूबती रौशनी में नये

दीप जलाकर चकाचौंध करना चाहता हूं !

हौंसले अब भी मंद नहीं, परवान

चढ़ रहे हैं नया गुलिस्तां बनाने को,

मन ही मन रच डाली नईदुनिया जो,

अब कागज पर उकेरूंगा !

- मदन वर्मा " माणिक "

  इंदौर, मध्यप्रदेश