तुम मंत्रमुग्ध कर देने वाली,
मैं बैराग लिए बैठा हूँ।
तुम ओस उषा की ठंढी बूँद,
मैं अग्नि की तपिश लिए बैठा हूँ।
तुम इंद्रिय निग्रह की स्वामिनी,
मैं निषेध प्रवृत्ति लिए बैठा हूँ।
तुम मधुर स्वर की स्वामिनी,
मैं मौन समाधि लिए बैठा हूँ।
तुम सुलझी सी प्रतिमूर्ति हो,
मैं उलझन रामाये बैठा हूँ।
तुम लहराती गंगा सी पावन हो,
मैं कर्मो से दूषित हुए बैठा हूँ।
-- लवली आनंद
मुजफ्फरपुर , बिहार