सबकी बातों में आना नही चाहिए।
हम मोहब्बत की रस्में निभाते रहे,
सामने वाले पत्थर चलाते रहे।
वो जलाते रहें घर,हम बुझाते रहे,
खुद को कायर बनाना नही चाहिए।
बेवजह वो सरेआम इल्जाम दे।
फिर उसे सच कहे पाप का नाम दे,
दोस्ती को दुश्मनी का इनाम दे।
नाज इतना उठाना नही चाहिए।
जिल्लतें तोहमते कब तलक हम सहे?
इससे बेहतर है कि हम तो तन्हा रहें।
चाहे अंजाम जो हो पर सच कहे!
झूठ को सर चढ़ाना नही चाहिए।
गुन्जा गुप्ता 'गुनगुन', मऊ