क्या हर्ष क्या विषाद
क्या पूजा क्या प्रसाद,
सब तो मन के भाव हैं
भाव हीन होकर जीना
शून्य के शैय्या पर सोना है,
उच्च शिखर व अनंत गर्त तक
सम में ही जिसे बोना है,
उसे क्या पाना क्या खोना है
उसे क्या पाना क्या खोना है!!
अंजनी द्विवेदी (काव्या)
देवरिया उत्तर प्रदेश