नारी के जीवन की
गाथा न्यारी
मायका प्यारा,
ससुराल भी प्यारी
घर की लाज भी वही
और सम्मान भी
जीवन नाव की
पतवार भी।
दर्द को अपने
वह सह लेती
हर रंग में खुदको
ढाल लेते
आसमान में उड़ने
की ख्वाइश रखती
लेकिन ज़मीन से न
पांव ऊपर करती।
न थकान, न आराम
न कोई साज सज्जा
घर का काम भी करे
और ऑफिस में भी
न आराम करे।
बेटी, बहन,बहू ,
पत्नी का धर्म निभाती
खूब जतन से मां का
कर्त्तव्य भी पूरा करती
भूल कर सारे जहां को
घर को स्वर्ग
का रूप वह देती।
हां , नारी अपना हर
रूप में श्रेष्ठ होती।
डॉ0 जानकी झा
कटक, ओडिशा