दृग अंजन में प्रीत बसे
तो बढ़ जाता अनुराग,
अधरों पर मुस्कान दिखे
तो बढ़ जाता अनुराग।
उर स्पंदन में झंकृत होते
मृदु प्रीत की तान,
सुरा पिलाती नैनों से,
जब बढ़ जाता अनुराग।
निश्छल निर्मल भाव बहे
तो बढ़ जाता अनुराग,
मंजु मुख की आभा बढ़े
तो बढ़ जाता अनुराग।
शुचि प्रीत जगत की रीत,
मौन में भी शब्दों को पढ़े
तो बढ़ जाता अनुराग।
रीमा सिन्हा
लखनऊ-उत्तर प्रदेश