स्त्री का मन

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


कभी सागर सा गहरा

कभी उथली सरिता सा

कभी बादलों सा उड़ता

कभी बरसता घटा सा

स्त्री का मन


कभी झरने सा गिरता

कभी बहता दरिया सा

कभी हवा सा चलता

कभी अडिग पर्वत सा

स्त्री का मन


कभी फूल सा कोमल

कभी कठोर व्रज सा

कभी आकाश सा अनन्त

कभी धीरज धरा सा

स्त्री सा मन


कभी तितलियों सा चञ्चल

कभी एकनिष्ठ चकोर सा

कभी महलों को ठुकराता

कभी झोपड़ी में निभाता सा

स्त्री का मन


जो बहता है, ठहरता है, सिमटता हैं

उलझा अनगिनत सवालों सा

स्त्री का मन


कहाँ इतना आसान है

स्त्री और स्त्री मन को समझना।


कवयित्री:- गरिमा राकेश 'गर्विता'

पता:- कोटा राजस्थान