प्रेम की दाल में जोर-जबरदस्ती का तड़का लग जाए तब उसमें से खुश्बू नहीं जलने की बू आने लगती है। एकतरफा प्रेम यह मान लेता है कि उसका प्रेम हर हाल में स्वीकार्य होना चाहिए। बाजार में स्वीकार्य बनाने की कई सुविधाएँ उपलब्ध हैं। माचिस, तेल, चाकू, तलवार, एसिड, फंदा और जहर ऐसे एकतरफाओं के शब्दकोश में मोटे और गहरे स्याही में छपे पड़े होते हैं। इनके लिए किसी पादटिप्पणी की आवश्यकता नहीं पड़ती। ये अपने आप में इतने व्याप्त हैं कि बेबसों की बेबसी को बस्साने पर मजबूर कर देते हैं। इनके हिसाब से प्रेम का मतलब एक-दूसरे को काटकर खा जाना है। यह एक ऐसा रसायन है जो शरीर के कार्बन को इतना काला कर देता है कि एकतरफा प्रेमी का नाम जो भी हो वह नाम से काला, काम से काला और खून से भी काला होता है। इनके प्रेम के सात चरण होते हैं - पहला वासना दूसरा जबरन छीनने की चाह, तीसरा धमकाना, चौथा उठाकर ले जाना, पांचवा न मिलने पर ऊटपटांग सोचना, छठवां सनकी हरकतें करना और सातवा वासना की वस्तु न बनने पर जिंदा जला डालना । आज प्रेम करने वाले नहीं फ्रेम में चढ़ाने वाले मिल रहे हैं। जलती लाशों के बीच निकलने वाली सड़ांध को खुश्बू समझने वाले ये एकतरफा प्रेमी ‘जिगर मुरादाबादी’ को ढूंढ़ रहे हैं। उन्हें चुनौती देते हुए कह रहे हैं –
कौन कहता है ये इश्क नहीं आसां,
ज़रा हमसे मिलकर तो समझ लो तुम।
यह आग का जजीरा है,
मान गई तो जिंदा नहीं तो जलकर मरना है।
डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, मो. नं. 73 8657 8657