नौमी तिथि में, यह मधुमास है पुनीत,
मानव मन सत्य, प्रेम करुणा लिखित।
राम-व्यक्तित्व में जो विज्ञान की प्रीत,
कलिकाल में वही नवाचार की रीत।
जीवन में घटित हुआ विषम-दुर्भाग्य,
पितृ-आदेश मान,झेला दुःख- दैन्य।
त्याग भाव से राम करें,
आर्ष-संस्कृति का रक्षण।
पर महाकाल था विकट,
हुआ माँ सीता - हरण।
प्रेम क्षेम चिंतन में,करें
वे दक्षिण भारत गमन।
मनुज, वन जीव संधि
से पराजित हुए जलधि।
महायुद्ध में होता, दनुज
वंश- बेल का नाश।
अद्भुत कोदंड - धनुष का,
दशानन बनता ग्रास।
विजय उपरांत राम रचें,
लीलामय इक नवाचार।
दस-सिर हनन पाप का,
करूँ मैं सत्य-परिहार।
हर शीर्ष उदित होते,
बहुल वृत्ति-विचार।
क्रोध,लोभ,मोह, द्वेष,
हिंसा, असत्य, अहंकार।
नव -सिर रावण के,करें
काम - कुवृत्ति में विहार।
एक सिर उनमें ही था,
ज्ञान-भक्ति का विचार।
ग्लानि में राम,जो परंतप,
मन अब था क्षमा - याची।
इस प्रेम- पीर से ही होती,
राम चरित - विधा ऊँची।
आओ, हम रचें पावन मन
में, कथा वह भक्ति से।
अवगुण को तजें, हम,
अन्तः की नव-क्रांति से।
आत्म-विश्वास सहज हो,
राम नाम की शक्ति से।
@ मीरा- भारती,
पुणे,महाराष्ट्र