प्रकृति ही तो
फैली चहुंओर है
मुस्कान भरे
खिलते पुष्प
हरियाली बिखरी
खुशियां छाई
नदिया बहती
सागर से मिलने
लक्ष्य निश्चित
कल-कल सी
नदियां बलखाती
राग सुनाएं
जीव-जंतु भी
भिन्न भिन्न राग से
लुभाने आएं
धरती -नभ
मिलने को आतुर
सुन्दर दृश्य
इन्हें न छेड़ो
वरदान है यह
परमात्मा का
स्वरचित एवं मौलिक रचना
अनुराधा प्रियदर्शिनी
प्रयागराज उत्तर प्रदेश