चल अकेला चल,पथिक तू झंझावतों से लड़ता जा,
विशाल हिमाद्रि भी कम्पित हो जाये तू बढ़ता जा।
तेरे रुकने से रुक जायेगी ये धरा,मौन होगा व्योम,
निज अश्रुओं के बाँध बना,प्रस्तरों से लड़ता जा।
जो बीत गया वो सपना था,कोई न तेरा अपना था,
निज करों को ढाल बना,बादलों से आगे निकलता जा।
तुझमें व्योम,तुझमें धरा अपार, तुझमें निहित संसार,
तोड़ मिथक दुर्गम द्वार,तू मंज़िल तक चलता जा।
रीमा सिन्हा
लखनऊ-उत्तर प्रदेश