जयति मां दुर्गा भवानी, अष्ट बाहु सहस्त्र रूप धारिणी।
रोग,शोक, पाप नाशिनी, असुर महिषासुर संहारणी।।
काल,अतिकाल रूपणी, शाकिनी-डाकिनी गर्व मर्दिनी।
सार्वभौम जगत जननी, सुरूप निर्मल काया प्रदायिनी।।
विघ्नहरणी,पापनाशनी, चक्र,खप्पर,पिनाकधारिणी मां।
मतवाला मतंग चण्ड-मुण्ड, शीर्षहार ग्रीवा धारणी मां।।
नौ स्वरूपा, हरण व्यथा, सर्व सुख दात्रि दयानिधानी मां।
मनुज मन कांति, शांति, मुख प्रखर प्रचंड ज्वालनी मां।।
नित्य आरत,पाप स्वारथ, सकल संशय युगचालनी मां।
महासमर सिंहिनी स्वरूपा, दनुज विपिन विदारणी मां।।
मेघवन अंधियारे,सर्व उजियारे, जया,आद्या,भवमोचनी मां।
दिव्य भाल,ललाट,भीषण, जहान्वी सा पतीत पावनी मां।।
विश्व रक्षिका,क्लेश नाशनी, युगमौना अमिय संचारणी मां।
विपत विफलनी, निरामयनी, सगर पुत्र काल तारिणी मां।।
खोल त्रिनेत्र दो दीर्घ आशीष, बिगड़े बनाए कल्याणी मां।
जन आकुलता हरण करो, भारत रत्नगर्भा संरक्षणी मां।।
कवि- अशोक कुमार यादव
पता- मुंगेली, छत्तीसगढ़ (भारत)