तपन

 युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क  

नारी घर की लक्ष्मी है,

कहते हैं सब लोग यहां।

हम रहते हैं उस देश में,

नारी की पूजा होती जहां।।

भीषण गर्मी में भी नारी,

तप कर खाना बनाती है।

स्वेद बिंदुओं के बहने पर,

बार-बार उन्हें हटाती।।

पल-पल झुलसे उसका तन,

पर मन की बात न कहती है।

करती पोषण अपने परिवार का,

दुष्कर अगन को सहती है ।

फिर भी कई बार उन्हें,

कितनी बातें हैं सुननी पड़ती।

सहनशक्ति की मूर्ति है नारी,

पीछे फिर भी ना हटती।।

क्या हक नहीं है उनको भी,

थोड़ा सुकून भी मिल जाए।

टूट गई यदि क्षमता उनकी,

तो क्या भोजन सबको मिल पाए।

आओ आज हम सब मिल,

ऐसी शपथ उठाते हैं।

ऐसी तपन में थोड़ा थोड़ा,

नारी का हाथ बढ़ाते हैं।।

स्वरचित

गीता देवी

बिधूना, औरैया