मत कर तू अभिमान
तु एक दिन मिट्टी में
मिल जायेगा।
आज जो तेरा है
वह एक दिन
किसी और का ही
कहलायेगा।
बुद्धिमान ज्ञानवान और
धनवान सब आते
और जाते है
पर अन्त में वह स्वयं को
श्मसान में ही पाते है।
रावण सा ज्ञानी
अभिमानित ना अमर हुआ
धीर - धरे जो संयम से
अपने हिस्से की
सुख वह पाता है।
छल- छल करने वाले ही
थोड़ा होते ही
अभिमान में स्वयं को
ओत पोत वह पाता है।
संतोष है जीवन का आधार
प्रियंका पेडिवाल अग्रवाल
विराटनगर-नेपाल
977 980 7080270