लिंग-भेदभाव के आंकड़े हैं दुःखद,
विकट प्रश्न है देश की आधी तादाद,
के अस्तित्व का।
अर्द्ध-राष्ट्र निरस्त हुआ, क्या यह रूप धरा
के पूर्णत्व का ?
तो,अवनि-अम्बर में लहराता परचम किस
अपराजिता का ?
पुरुष-दम्भ को दिखाया जो सत्य दर्पण था
यशोधरा ने ?
कृपा नहीं,समता के हक, स्व - निर्णय के
अधिकार का।
देश की हर बेटी हो, तुम जैसी ही सफल,
स्वयंसिद्धा।
स्त्री-शक्ति को राष्ट्र मुख्य-धारा से जोड़ना,
बडा लक्ष्य।
शोषण की सोच का आत्मशक्ति जागरण
से होगा अंत।
स्त्री-सशक्तिकरण का मंत्र बन रहा अब
देश-अस्मिता प्रश्न।
खेत,उद्यम,गृह कार्य तुम्हारे नहीं हैं, अब
संगठित क्षेत्र।
उद्धारक नहीं, सेवक,सहायक नहीं, खोजो
अब आत्म-शक्ति।
आह्वान है देश का, जाग्रत होकर बनना है
पुनः वीरांगना।
पूर्ण नवल स्वरुप तुम्हारा, करेगा संतुलित
धरा -विचार-श्रृंगार।
@ मीरा भारती
पुणे, महाराष्ट्र।