होली की ख़ुशी अब होती नहीं,
ग़ुलाल अब शरारत से लगती नहीं,
मन तो समझा लेते है पुरानी बातों से,
बचपन वाले दोस्त अब मिलते नहीं।
कहि पानी से नहाते थे
कहि ग़ुलाल से मुंछ बनाते थे
अब कहा वो जमाना यारों
ये सब बचपन मे हुया करते थे
अब जमाना स्टेटस का है
अब बचपन एडिटिंग का है
फ्रिण्ड ऑनलाइन मिलते
होली इमेज की है।
प्रतिभा जैन
टीकमगढ़ मध्यप्रदेश