एक अरसे तक सोचती रही
सबसे महत्वपूर्ण हूं घर में,
घर घर नहीं है मेरे बिना।
फिर एक दिन अहसास हुआ
महत्वपूर्ण तो घर ही था,
मैं कुछ थी ही नहीं।
बस एक भ्रम ही था
जीती रही जिसमें सालों तक।
मेरा घर, मेरा परिवार
जीवन भर देती रही आकर।
करना पड़ा मगर स्वीकार
कर्तव्य निर्वाह था बस,
मैं तो कुछ थी ही नहीं।
एक भ्रम ही था,
जीती रही जिसमें सालों तक।
अर्चना त्यागी