हे चंद्रमौली ,हे गंगाधर किस कठिन तपस्या में बैठे हैं आप।
ध्यान लगा कर शांत मुद्रा में किस गुप्त गुफा में बैठे हैं आप।।
सर्वव्यापी हो जगत सृष्टा हो सृष्टि के आप हीं आधार।
कण कण में व्याप्त तेज का आप से हीं तो केवल संचार।।
सर्प गले में माला शोभित रूप अनोखा बतलाता।
भस्म और चंदन का सृंगार अनोखा दिखलाता।।
नंदी हो सवारी जिनके बस त्रिशूल हो एकल अस्त्र।
बड़े बड़े और आताताई का संघारक केवल पिनाक अस्त्र।।
गौरी सती उमा पार्वती हिमाचल सुता जिनके हो अर्धांगनी रूप।
अर्धनारीश्वर रूप बता कर मान बढ़ाया नारी रूप ।।
प्रथम पूज्य हो जिनके लाला और देव सेना के सेनापति।
कोटि कोटी नमन है आपको हे कैलाशी उमा पति।।
जटा से निकले जिनके गंगा जो धरती को करती पवित्र।
तुम्हे नमन हे औघड़दानी तुम्हे वंदन हे सती पति।।
जन जन में व्याप्त कुरीति इसको हर लो हे गौरी पति।
सौहार्द बढ़ा दो जन मानस में हे सर्वव्यापी हे पार्वती पति।।
श्री कमलेश झा
राजधानी दिल्ली