मैं अकेला हूं ,
ना कोई मेरा है ना कोई अपना है ,
ना कोई दोस्त है ना कोई बहन है ,
मैं अकेला हूं इस साहित्यिक संसार में ,
सिर्फ यहाँ झूठों का अंबार है सिर्फ ,
कहते हैं अपना और भूल जाते हैं गैराना समझ कर ,
सिर्फ दोस्ती, रिश्ता काम से काम का ,
बहन हो या मित्रता सिर्फ काम से काम है,
ना व्यवहार, ना अपनापन सिर्फ मतलब का ,
आजकल रिश्तों में लोग सिर्फ फायदा देखते हैं ,
फायदे के लिए मरते हैं, अपनापन, प्यार ,
ये तो मर चुका है इस नास्तिक दुनिया मे, आपस्वार्थ दुनिया में ,
ना किसी के पास समय है ना किसी के पास दिल ,
आज किसी से सच बोलो तो खुद बुरा बन जाओगे ,
भले उनको बुरे लोग पसंद है लेकिन आप बुरा बन जाओगे ,
ये जो दुनिया है, फैशन, दिखावट, झूठ के पीछे भागती है ,
भले इनका लोग गलत तरीके से उपयोग कर ले ,
समझती कहाँ है ये पागलपन दुनिया, क्योंकि ,
यहाँ सच्चे को तिरस्कार किया जाता है और,
झूठों को इज़्ज़त दिया जाता है ,
इस कलियुगी, भ्रष्टाचारी, नर्क ,
रिश्तों का नाजायज संबंध बनाने वाली ,
दोस्ती के नाम पर धोखेबाजी ,
सहायता के नाम पर गलत फ़ायदा उठाने वाली ,
प्यार के नाम पर धोखा देने वाली ,
काम के नाम पर इज़्ज़त लूटने वाली ,
साहित्य,शायरी के नाम पर गलत करने वाली ,
राजनीति के पीछे बुरी नज़र वाली ,
यही है आज कल की दुनिया ,
अगर ना संभालो तो कुए मे गिर जाओगे ,
या खुद को इस दुनिया में अपनी ,
इज़्ज़त, नाम, ख्याति सड़कों पर लूटा दोगे ,
सिर्फ अकेले अपने नाम के पीछे ,
सरेआम बाजार में बदनाम हो जाओगे ,
सम्भल जाओ ये दुनिया वालों ,
वर्ना इज़्ज़त सरेआम बाजार में बिक जायेगी ,
संभालो ये दुनिया वालों, इज़्ज़त ना ख़रीदी जाती ,
सौहरत ना बेची जाती, संभालो मेरे प्यारे दोस्तों, बहनों ,
ये एक सच्चे दोस्त की पुकार है ,
सायल की दिल की आवाज़ है ।
- रूपेश कुमार
चैनपुर, सीवान, बिहार
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