मेरी अजन्मी बच्ची

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


मेरी अजन्मी बच्ची

मुझे माफ़ कर दे

तुझे मैं जीवन दे न सकी

अपनी गोद में ले न सकी।

जितनी तू तड़पी मेरी कोख में,

उतनी ही छलनी मैं भी हुई होगी

पर जितनी तू लाचार थी

मैं भी उतनी ही कमजोर थी।

लड़ न सकी मैं तेरे लिए,

मैं कितनी मजबूर थी।

कठपुतली थी मैं शायद

इशारों पर नाच रही थी।

चाह कर भी मैं तुझे,

बचा नहीं पा रही थी।

जब तू टुकड़े-टुकड़े निकली

मैं भी टुकड़े-टुकड़े हो रही थी।

तू तो रोयी होगी कुछ पल,

मैं आज तलक रो रही हूँ

तुझे जो मारा मैंने कोख में

उस दिन से जिंदा मैं भी कहां थी

अपराध इतना था बस तेरा मेरा,

कोख में मेरी तू जो पल रही थीं।

बस इस अपराध की बलि

तू और मैं चढ़ गए।

तू मुझसे छिन गयी थी,

मैं तुझसे छिन गईथीं।

खोया है मैंने तुझे जिस दिन से

सेहत मेरी भी कहां ठीक रही हैं

आज भी मेरी नजरों के आगे,

सोनोग्राफी की फोटू घूम रही हैं।

एक इंजेक्शन लगा और

तन से मैं बेसुध थी।

होश आया जब तलक,

मैं तुझकों खो चुकी थी।

तेरी वो खामोश चीखें,

मुझे आज भी सुनाई देती हैं।

जब,-जब तू याद आती हैं,

नयनों संग आत्मा भी रोती हैं।

बौखलाई  सी मैं तुझे खोजती हूँ,

पर सपनों में भी तू कभी दिखाई नहीं देती हैं।

पगलाई सी बेसुध हो जाती हूँ

जब तू याद बहुत आती हैं।

घुटती हूँ अंदर ही अंदर

चीख के रो भी नहीं पाती हूँ।

मेरे अपराध की यही सजा,

स्वयं को बार-बार देती जाती हूँ।

संग अगले जन्म बेटी ना बनूँ

बस यही दुआ करती जाती हूँ।


कवयित्री: गरिमा राकेश गौतम

पता : कोटा राजस्थान