ओ मेरी प्यारी सखी जगसे निराली।
देख,मैं हर पल मनाती हूँ दिवाली।
दीप आशाओं के,अंतस में जलाती,
ज्योति मन में नेह की हँसकर बढ़ात।
स्वप्न की लड़ियाँ सजाए मैं नयन में,
हर्ष की झालर बनी नित झिलमिलाती।
भावनाओं की सजे हर शाम थाली,
देख, मैं हर पल मनाती हूँ दिवाली।
रात बिरहा की,अमावस्या सी लगती,
याद उनकी तब है तारों सी चमकती।
जब सजी दुल्हन सी दर्पण मैं निहारूँ,
सुनके हर आहट मेरी रग रग सिहरती।
गूँजे स्वर लहरी वही शहनाई वाली,
देख,मैं हर पल मनाती हूँ दिवाली।
कल्पना विस्तृत है,रंगोली बनी है,
अनुभवों के रंग से चौखट सजी है।
हरि-कृपा-परिपूर्ण है जीवन ये मेरा,
मन के उपवन में कली भी फिर खिली है।
अब स्वयं ईश्वर बना है इसका माली,
देख,मैं हर पल मनाती हूँ दिवाली।
रचना सरन,
न्यू अलीपुर-कोलकाता