प्रेम का नवल विहान रे

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

आओ ऐसा गेह बसाए जिसका नवल विधान रे,

नेह की बरखा झर झर बरसे सजे मंद मुस्कान रे।

मन की पावन कोमल डोरी,

प्रेम की पूँजी धरी तिजोरी,

मात पिता संग शोभित ऐसे,

शम्भू  गौरा पे मोहित जैसे,

मधु से मीठे रस से सिंचित रिश्तों का ये जहान रे,

नेह की बरखा झर झर बरसे सजे मंद मुस्कान रे।

शुभ्र धवल आशीष का आँचल,

विनयशीलता चक्षु का काजल,

हर्ष दिखाये  स्वप्न लक्ष्य के,

अमृत नीर बने गंगाजल,

रंगीले  पुष्पों से सुरभित माली का बागान रे,

नेह की बरखा झर झर बरसे सजे मंद मुस्कान रे।

बचपन अठखेली करता हो,

तरुण दिवा में रंग भरता हो,

व्यथा खड़ी हो द्वार के बाहर,

प्रेम का दीपक नित जलता हो,

वसुधा में दिनकर लाये नित प्रेम का नवल विहान रे,

नेह की बरखा झर झर बरसे सजे मंद मुस्कान रे।

रचना -

सीमा मिश्रा, बिन्दकी, फतेहपुर (उ० प्र०)