दूरियां बढ़ रही हैं सम्भल जाइए,
पाली हैं गलतफहमियां भगाइए।
दूर गगन तक उड़ते पक्षी घर चले,
आप भी ठौर तक तशरीफ़ लाइए।
मां कभी भी बुरा सोच सकती नहीं,
बाप से ही अस्तित्व है मत भुलाइए।
काट सकते हैं अकेले तो कुछ नहीं,
पर समय के थपेड़े से घबराइए।
मान-सम्मान की बात है सबसे बड़ी,
आंच आए जो उस पर तो शरमाइए।
बात बढ़ने से पहले बना लीजिए,
बात बढ़ जो गई तो चुप हो जाइए।
इबादत भी जरूरी है सबके लिए,
कभी-कभी ही सही सिर झुकाइए।
बड़ा कारसाज है ऊपर वाला साहिब,
उसके अस्तित्व पर न उंगली उठाइए।
अनुपम चतुर्वेदी, सन्त कबीर नगर