युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
अपने बराबर खड़ी
कब देख सके हो मुझे
तभी तो
मीलों गहरी गिरा खुश हुए थे न
पर मैं
वहां भी
मस्ती में भरी
झूमती गाती
असंख्य निरीह प्राणियों को
अंक में समेटे
बहती रही निरन्तर
कितने ही जीवों की प्यास बुझाती
जब भी कोई बाधा आई
मैं पुनः द्विगुणित बेग से आगे बढ़ी
राह के पत्थर वदन को शालते रहे
कितने ही बंधनों ने बांधा
कितनी ही बार रास्ते रोके
पर मैं
बिना किसी आह के
आगे ही आगे बढ़ती रही
अनवरत
मंथर मंथर गति से
गन्तव्य की ओर
क्यों
क्योंकि मैं
नारी हूं न
जब जब
आतिश ए सुपुर्द की
तब तब
अणुव्रत अतुल शक्ति पुंज
अग्निस्फुलिंग बन
अनन्त रुप हो उठी
रक्तबीज सी
कभी सीता बनकर
कभी यज्ञसेनी
तो कभी लक्ष्मी
मैं ही शूर्पणखा बन
असुरों की संहारक बनी
तो मोहिनी बन
देवों की अमृत्व प्रदायक
मैं नारी हूं
शायद तुम भूल जाते हो
कि
तुम हो
तुम्हारा कारण भी मैं ही तो हूं
पर तुम्हारा पुरुषत्व.......
शायद तुम्हारे लिए मैं कल भी अबला थी
और आज भी।
देवयानी भारद्वाज
उसायनी फीरोजाबाद